महासागरीय क्षेत्र पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग पर स्थित है, जिसका तापमान पृथ्वी की जलवायु को व्यापक रूप से प्रभावित करता है और समुद्री जीव-जंतुओं, वनस्पतियों के साथ ही तटीय, स्थलीय जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है। सामुद्रिक परिस्थितिकी एवं तटीय परिस्थितिकी समुद्री ताप पर निर्भर करता है।
वर्तमान में भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का अध्ययन स्थलीय क्षेत्रों के साथ ही समुद्री क्षेत्रों के लिए भी प्रमुखता से किया जा रहा है। अलनीनो जलधारा की तापीय वृद्धि का प्रभाव वैश्विक है। अतः समुद्री तापमान की स्थिति का अध्ययन अत्यंत आवश्यक हो गया है। वर्तमान में भौगोलिक सूचना तंत्र सुदूर संवेदन उपग्रह का उपयोग भी समुद्री जल के तापीय एवं वायुदाब संबंधी अध्ययन के लिए किया जा रहा है।
सागरीय जल के तापमान का स्रोत सूर्य है। सूर्य से लघु तरंग के रूप में महासागरों को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्यतप कहते हैं। सूर्य के अतिरिक्त ताप की कुछ मात्रा पृथ्वी के आंतरिक भाग, ज्वालामुखी क्रिया तथा जल की दबाव प्रक्रिया से भी प्राप्त होती है। परंतु यह मात्रा नगण्य होती है। पृथ्वी के स्थलीय भागों की तरह ही समुद्र के तापमान का मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य की किरणों का तिरछापन ही मुख्यता महासागरों के औसत ताप को प्रभावित करता है। इसी कारण निम्न अक्षांशो की तुलना में उच्च अक्षांश में तापमान कम पाया जाता है। क्योंकि विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है।
सूर्य की किरणें जल में गहराई की ओर प्रवेश करती हैं। इसी कारण महासागरीय जल में सतह से गहराई की ओर तापमान में विषमता पाई जाती है। इस प्रकार महासागरीय तापमान का अध्ययन क्षैतिज एवं लंबवत दोनों प्रकार से करना आवश्यक होता है। सभी महासागरों का औसत वार्षिक तापमान सतह पर 17.2 डिग्री सेल्सियस निश्चित किया गया है। उत्तरी गोलार्ध में 19.5 डिग्री सेल्सियस तथा दक्षिणी गोलार्ध में 16.1 डिग्री सेल्सियस होता है। इस विषमता का कारण दक्षिणी गोलार्ध में अत्यधिक जल के स्वतंत्र संचार होने से ऊष्मा में स्थानांतरण का होना है।
महासागरों की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाला सूर्यतप की मात्रा पर सूर्य की किरणों का तिरछापन, दिन की अवधि सूर्य से पृथ्वी की दूरी, वायुमंडल का स्वभाव आदि का प्रभाव अधिक होता है। महासागरीय जल के गर्म एवं ठंडा होने की प्रक्रिया स्थल से थोड़ी भिन्न होती है। चूंकि जल की विशिष्ट ऊष्मा स्थल से अधिक होती है। पुनः सागरीय जल में क्षैतिज एवं लंबवत गतियां भी पाई जाती है, जो सागरीय जल के तापमान के विसरण में प्रमुख भूमिका निभाता है। लेकिन पृथ्वी के स्थलीय भाग की सतह से सागरीय भाग में ऊष्मा संतुलन की स्थिति पाई जाती है।
ऊष्मा बजट :
महासागरों की ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है और सूर्य से लघु तरंगों के रूप में सौर्यिक विकिरण समुद्री जल पर लगभग 300000 किमी प्रति सेकंड की दर से आता है। जिसका पृथ्वी की वायुमंडल एवं पृथ्वी के स्थलीय एवं सागरीय भागो द्वारा अवशोषण होता है जिसमें पृथ्वी एवं वायुमंडल में ताप संतुलन बना रहता है।
पृथ्वी का स्थलीय एवं सागरीय भाग सौर्यिक ऊर्जा के जिस मात्रा का अवशोषण करता है, उसके बराबर ही ऊर्जा अंतरिक्ष में लौटा देता है। इस तरह सागरों को प्राप्त ऊष्मा एवं उत्सर्जित ऊष्मा की मात्रा बराबर होती है। अर्थात प्राप्त सौर्यिक ऊर्जा और उत्सर्जित ऊर्जा में संतुलन रहता है, जिसे सागरीय उष्मा बजट कहते हैं। ऊष्मा बजट की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है। क्योंकि सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य ऊष्मा का अवशोषण एवं उत्सर्जन अत्यंत जटिल प्रक्रियाओं से निर्धारित होता है। इसी कारण पृथ्वी के ऊष्मा बजट के आंकड़ो में विभिन्न जलवायुवेत्ताओं में थोड़ी भिन्नता पाई जाती है। लेकिन इस बारे में एकमत है कि अवशोषित एवं उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा में संतुलन पाया जाता है। क्योंकि महासागरों का क्षेत्रफल पृथ्वी के 71% भाग पर है।
अतः सौर्यिक ऊर्जा की जो मात्रा पृथ्वी की ओर आती है। उसका लगभग 71% भाग महासागरों को प्राप्त होता है और इसी के बराबर मात्रा महासागर अंतरिक्ष में वापस लौटा देता है अर्थात उत्सर्जित कर देता है। पृथ्वी सौर ऊर्जा का 51% भाग प्राप्त करता है और विभिन्न प्रक्रियाओं से 51% उर्जा ही उत्सर्जित करता है।
महासागरों में तापमान का वितरण :
महासागरों के सतह का औसत तापमान 17.2 डिग्री सेल्सियस है। लेकिन महासागरों के तापमान में क्षैतिज एवं लंबवत विषमता पाई जाती है और विभिन्न महासागरों एवं एक महासागर के विभिन्न भागों में तापमान के वितरण में क्षैतिज एवं लंबवत विषमता मिलती है। महासागरीय जल की सतह का औसत दैनिक तापांतर नगण्य में होता है।
यह लगभग 1 डिग्री सेल्सियस होता है। सामान्यतः महासागरीय सतह के जल का अधिक तापमान 2:00 बजे दोपहर में तथा न्यूनतम प्रातः 5:00 बजे अंकित किया जाता है। सागरीय जल का उच्चतम अगस्त में तथा न्यूनतम फरवरी में उत्तरी गोलार्ध में अंकित किया जाता है। सामान्य रूप से औसत वार्षिक तापांतर 10 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। लेकिन प्रादेशिक स्तर पर भिन्नता पाई जाती है। बड़े सागरों का वार्षिक तापांतर कम होता है, जबकि स्थल से घिरे सागरों का अधिक होता है। अटलांटिक महासागर में प्रशांत महासागर की तुलना में अधिक तापांतर पाया जाता है।
महासागरीय जल के तापमान को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक :
- अक्षांश या सूर्य की किरणों का तिरछापन : विश्वत रेखा से ध्रुवों की ओर सतही जल के तापक्रम में कमी आती है। क्योंकि सूर्य की किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है। सूर्य की लंबवत किरण जल में अधिक गहराई तक प्रवेश करती है और इनका अधिकतम अवशोषण होता है। जबकि तिरछी किरणों का परावर्तन होता है।
- जल एवं स्थल के वितरण में असमानता : उत्तरी गोलार्ध में स्थल की अधिकता तथा दक्षिणी गोलार्ध में जल की अधिकता के कारण उत्तरी गोलार्ध में महासागर का तापमान अधिक होता है। क्योंकि गर्म स्थल के संपर्क के कारण महासागर अधिक उष्मा प्राप्त करता है। ठंडे स्थलीय भाग महासागर के तापमान को घटा देता है। उत्तरी गोलार्ध में इसी कारण समताप रेखाएं अक्षांश के समानांतर नहीं पायी जाती है। जबकि दक्षिणी गोलार्ध में जल की अधिक उपलब्धता के कारण समताप रेखाएं सामानांतर पायी जाती हैं।
- सागरीय जलधाराएं : गर्म जलधाराएं प्रभावित क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ठंडी जलधाराएं कमी लाती हैं इसका प्रमुख कारण गल्फस्ट्रीम गर्म जलधारा तथा लैब्राडोर ठंडी जलधारा को प्रभावित क्षेत्र में तापीय प्रभाव है।
उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त अन्त: सागरीय कटक, स्थानीय मौसमी दशाएं, सागर की स्थिति, आकार का प्रभाव भी तापमान के वितरण एवं स्थिति पर पड़ता है। जैसे विषुवतीय भागों में अधिक वर्षा के कारण सागरीय जल का तापमान नियंत्रित हो जाता है और उच्चतम तापमान अयन रेखाओं के समीप के भागों में पाई जाती है।
अयन रेखाओं के पास वर्षा की कमी, खुला आकाश अधिक तापमान का मुख्य कारण है। अक्षांशीय दृष्टि से विस्तृत सागरों का तापमान देशांतरीय दृष्टिकोण से विस्तृत सागरों के तापमान से कम होता है। भूमध्यसागर का तापमान कैलिफोर्निया की खाड़ी के तापमान से अधिक होता है।
महासागरीय तापमान का क्षैतिज वितरण :
भूमध्य रेखा पर सतह का तापमान 26.7 डिग्री सेल्सियस होता है। इससे ध्रवों की ओर तापमान में क्रमिक कमी आती जाती है जो प्रत्येक अक्षांश पर 0.5 डिग्री फारेनहाइट की दर से होती है। 20 डिग्री अक्षांश पर 22 डिग्री सेल्सियस, 40 डिग्री अक्षांश के पास 14 डिग्री सेल्सियस तथा 60° अक्षांश के पास 1 डिग्री सेल्सियस एवं ध्रवों के पास 0° सेल्सियस तापमान पाया जाता है। उत्तरी गोलार्ध का औसत वार्षिक तापमान 19.4 डिग्री सेल्सियस तथा दक्षिणी गोलार्ध का तापमान 16.1 डिग्री सेल्सियस होता है।
तापमान का लंबवत वितरण :
सागर का सर्वाधिक तापमान सतह पर पाया जाता है और सतह से गहराई की और तापमान में कमी होती जाती है। इसका कारण सूर्य का प्रभाव का कम होता जाना है। सूर्य की किरणें 200 मीटर की गहराई तक ही प्रवेश करती है। सही अर्थ में 20 मीटर की गहराई तक ही सूर्य किरणें गर्म करने में अधिक प्रभावकारी होती है।
भूमध्य रेखा से ध्रवों तक गहराई की और तापमान में गिरावट असमान दर से होती है, परंतु सागर नितल का तापमान सभी क्षेत्रों में समान होता है। अतः भूमध्यसागर पर गहराई के अनुसार तापमान में कमी की दर अधिक होती है, जबकि ध्रवों की और गहराई की ओर ताप घटने की दर कम होती है।
उच्च अक्षांश में बंद सागरीय क्षेत्र में तापीय प्रतिलोमन की स्थिति भी पाई जाती है अर्थात सतह का तापमान कम होता है जबकि गहराई में तापमान अधिक होता है। वैसे सागर जो उष्ण क्षेत्र में स्थित है तथा अन्य सागरों से या बाहरी क्षेत्रों से जल का मिश्रण नहीं होता वहां गहराई पर भी तापमान अधिक पाया जाता है। जैसे लाल सागर, सारगैसो सागर व भूमध्य सागर। स्पष्ट रूप से महासागरों का तापमान को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक एवं कारको के अंतर्क्रिया का परिणाम है।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- सामान्य परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है। जिस दर से यह तापमान कम होता है, इसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटने की बजाय बढ़ने लगता है। इस प्रकार ऊँचाई के साथ ताप बढ़ने की प्रक्रिया को तापमान व्युत्क्रमण (प्रतिलोम) कहते हैं।
- एल्बिडो : पृथ्वी द्वारा सौर विकिरण की अवशोषित मात्रा अथवा पृथ्वी सूर्य द्वारा जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है उतनी ही पार्थिव विकिरण के रूप में अंतरिक्ष में संचरित कर देती है और इस प्रकार पृथ्वी ऊर्जा का न तो संचय करती है न ही ह्रास करती है। यह अपने तापमान को स्थिर बनाए रखती है। इसे ही पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहते हैं।
- सौर विकिरण विद्युत चुम्बकीय विकिरण होता है जो सूर्य से ऊष्मा या प्रकाश के रूप में प्राप्त होता है। यह एक प्रकार की ऊर्जा होती है।
- हाल ही में, विश्व महासागर दिवस 8 जून को पुरे विश्व में मनाया गया, इस दिन की शुरुआत वर्ष 1992 में समुद्र की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में लोगो में जागरूकता बढ़ाने के लिए की गयी थी।