जेट स्ट्रीम का अर्थ | जेट स्ट्रीम के प्रकार | जेट स्ट्रीम का भौगोलिक प्रभाव

जेट स्ट्रीम से आशय


पृथ्वी के निचले वायुमंडल में क्षोभसीमा से सामान्यतः 600 से 900 मीटर नीचे और पृथ्वी से लगभग 6000 से 12000 मीटर की ऊंचाई पर अत्यंत तीव्र वेग वाली वायु धारा वायुमंडल के विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवाहित होती है, जिसे जेट स्ट्रीम कहते हैं। इसकी आकृति सर्पिल, विसर्पाकार होती है। इसके मध्य भाग में अक्ष के प्रत्येक बिंदु पर न्यूनतम गति 30 मीटर प्रति सेकंड पाई जाती है तीव्र वेग वाली जेट स्ट्रीम में 480 किमी प्रति घंटे की गति पायी जाती है।

जेट वायुधारा की चौड़ाई 60-140 किमी तक तथा मोटाई 2 से 3 किमी तक होती है और लंबाई हजारों किमी तक होती है। इस तरह जेट स्ट्रीम एक संकरी पट्टी में तीव्र वेग से प्रवाहित होने वाली प्रचंड वायु प्रवाह है, इसकी तीव्र गति के कारण ही इसके दोनों ओर के क्षेत्र शांत रहते हैं।
जेट स्ट्रीम विशिष्टता तापीय स्थिति के कारण पृथ्वी के ऊपरी एवं निचले वायुमंडल के तापीय एवं वायुदाब संबंधी विशेषताओं को व्यापक रूप से प्रवाहित करते हैं। इसका विशेष प्रभाव निचली वायुमंडल की विभिन्न परतों के जलवायविक एवं मौसमी परिस्थितियों पर पड़ता है।

उत्पत्ति क्षेत्र एवं विषमताओं के आधार पर तीन प्रकार के जेट स्ट्रीम होते हैं।

  1. ध्रुवीय जेट स्ट्रीम (40°-60° NS)
  2. उपोष्ण जेट स्ट्रीम (30°-65° NS)
  3. उष्ण पूर्वी जेट स्ट्रीम (8°-20° N)

ध्रुवीय जेट स्ट्रीम


अक्षांश के मध्य ध्रुवीय वाताग्र के शीर्ष भाग पर होता है। उपध्रुवीय क्षेत्रों में उपोषण उच्च वायुदाब से चलने वाली पछुआ हवाएं ध्रुवीय ठंडी हवाओं से अभिसरण का प्रयास करती हैं। जिससे ध्रुवीय वाताग्र का विकास होता है। ध्रुवीय वाताग्र के दोनों ओर क्षोभसीमा की ऊंचाई से तीव्र परिवर्तन होता है और ध्रुवों की ओर क्षोभसीमा की ऊंचाई अत्यंत कम हो जाती है। जबकि विषुवतीय क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय क्षोभसीमा अधिक ऊंचाई पर पायी जाती है। इन कारणों से ध्रुवीय वाताग्र के दोनों और तापीय स्थिति में तीव्र अंतर उत्पन्न होता है, जो तीव्र वायुदाब प्रवणता का कारण है। वायुदाब प्रवणता में तीव्र अंतर के कारण ही ध्रुवीय वाताग्र के शीर्ष भाग से तीव्र वेग वाली ध्रुवीय जेट स्ट्रीम की उत्पत्ति होती है।सकी औसत गति 300 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है। सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिण का स्पष्ट प्रभाव ध्रुवीय वाताग्र एवं जेट स्ट्रीम पर पड़ता है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति ध्रुवों की ओर हो जाती है, जबकि शीतकाल में अधिक सक्रिय तीव्र गति वाली एवं अधिक विस्तृत हो जाती है।

  • ध्रुवीय जेट स्ट्रीम में रासबी तरंगे : 

ध्रुवीय जेट स्ट्रीम में दोनों ओर स्थित पवनें एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश करती हैं। ध्रुवीय ठंडी पवनें गर्म पवनों के क्षेत्र में प्रवेश करने लगती है। पुनः गरम पवने भी ठंडी पवनों के क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। इस प्रक्रिया के कारण ध्रुवीय जेट में तीव्र लहरें या तरंगे उत्पन्न होने लगती हैं, जिसे रासबी तरंग कहते हैं।

ठंडी पवनों के गर्म क्षेत्र में क्रमशः प्रवेश करते जाने के कारण, वायुमंडल में ध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र का निर्माण होता है। इसी प्रक्रिया से गर्म पवनों के ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रवेश करने से वायुमंडल में उच्च उच्चदाब क्षेत्र का विकास होता है। स्पष्टत: वायुदाब में ऊंचाई पर चक्रवातीय एवं प्रतिचक्रवातीय स्थिति उत्पन्न होती है। अक्षांशों के चक्रवात के विकास में इसका व्यापक प्रभाव होता है। रासबी तरंगों के संचरण में वायुमंडलीय ताप संतुलन बना रहता है।

उपोष्ण जेट स्ट्रीम


30°-65°NS अक्षांश के पास उपोष्ण उच्च वायुदाब के क्षेत्र में हेडली चक्र के शीर्ष पर उपोष्ण पछुआ जेट की उत्पत्ति होती है। इसकी उत्पत्ति का मुख्य कारण हेडली चक्र का विकास एवं कोरिओलिस प्रभाव है। स्पष्टत: फेरल चक्र एवं हेडली चक्र के मिलन क्षेत्र से पछुआ जेट की उत्पत्ति होती है, जो वायुमंडलीय तापीय विशेषता के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर समान्यत: 30°-65° के मध्य पूरे ग्लोब पर प्रवाहित होते हैं। सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणयन का प्रभाव पछुआ जेट की स्थिति पर भी पड़ता है। भारत के शीतकालीन मौसम को पछुआ जेट व्यापक रूप से प्रभावित करता है। 

उष्ण पूर्वी जेट स्ट्रीम


पूर्वी जेट का प्रभाव स्थानीय होता है, इसकी उत्पत्ति तिब्बत के पठार के क्षेत्रों से मुख्यता होती है। ग्रीष्म काल में उत्तरी गोलार्ध में 8 डिग्री 20 उत्तरी अक्षांश के मध्य विशुद्ध तापीय कारणों से पूर्वी जेट की उत्पत्ति होती है। इसकी उत्पत्ति का संबंध सूर्यातप, NITC, तिब्बत के पठार का गर्म होना, दक्षिण पूर्वी एशिया के पहाड़ी क्षेत्रों का गर्म होना है। पूर्वी जेट एक गर्म जेट है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होता है तथा मुख्यतः भारत एवं अफ्रीका को प्रभावित करती है। भारत का ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावित करने वाला यह सर्वप्रमुख कारण है। इसकी प्रवृत्ति अनियमित एवं अनिश्चित है। इसकी सक्रियता में दैनिक परिवर्तन भी पाया जाता है।

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