वासुदेव बलवंत फड़के को इतिहास में क्यों जाना जाता था?

भारतीय स्वतंत्रता की क्रांति और उन क्रांतियों की वजह से देश को आजादी मिली, आज वह भारतीय इतिहास में दबकर रह गए हैं। किसी भी कक्षा, स्कूल-कॉलेज या संस्थाओं में उनका जिक्र नहीं किया जाता। जो भारतीय स्वतंत्रता के असली हकदार है। आज भी वास्तविक क्रांतिकारियों का जिक्र नहीं किया जाता, न ही उनके बारे में पढ़ाया जाता है। जिन्होंने देश की खातिर अपना परिवार, अपनी शिक्षा, अपनी जमीन, अपना कारोबार सब कुछ भारत माता के नाम कर दिया। उनमें से एक क्रांतिकारी नेता का नाम वासुदेव बलवंत फड़के है। जिसके बारे में नीचे विस्तारपूर्वक समझाया गया है।

वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरोड़े गांव में हुआ था। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले फड़के भारत के पहले क्रांतिकारी थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद आजादी के महासमर की पहली चिंगारी चलाई थी।

संक्षिप्त परिचय :
पूरा नाम : श्री वासुदेव बलवंत फड़के

जन्म स्थान : रायगढ़ जिला महाराष्ट्र

पिता का नाम : बलवंत फड़के

माता का नाम : सरस्वती बाई

पत्नी का नाम : सई बाई एवं गोपिका बाई

उनकी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एक दुकान पर काम करें, लेकिन उन्होंने पिता की बात नहीं मानी और मुंबई आ गए। उन्होंने जंगल में एक अभ्यास स्थल बनाया, जहां ज्योतिबा फुले और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भी उनके साथ ही थे। यहां लोगों को हथियार चलाने का अभ्यास कराया जाता था।

1871 में उनको सूचना मिली कि उनकी मां की तबीयत खराब है। उन दिनों वह अंग्रेजों की एक कंपनी में काम कर रहे थे। वह अवकाश मांगने गए, लेकिन नहीं मिला। अवकाश नहीं मिलने के बाद भी फड़के अपने गांव चले गए लेकिन तब तक मां की मृत्यु हो चुकी थी। इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजो के खिलाफ गुस्सा भर दिया और फड़के ने अंग्रेजों की नौकरी को छोड़ दिया।

इसके बाद अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की तैयारी करने लगे। उन्होंने आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम घूमकर नव युवकों से विचार-विमर्श किया और उन्हें संगठित करने का काम किया। महाराष्ट्र की कोली, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर उन्होंने रामोशी नाम का क्रांतिकारी संगठन तैयार कर दिया। इन्होंने इस मुक्ति संगठन के लिए धन एकत्रित करने के लिए अंग्रेजों के साहूकारों को लूटना शुरू किया। उसके बाद 1879 में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी।

महाराष्ट्र के 7 जिलों में वासुदेव फड़के का फैलाव फैल चुका था। उनकी गतिविधि से अंग्रेज अफसर डर गए थे। अंग्रेजी सरकार ने वासुदेव फड़के को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर ₹50,000 का इनाम रखा, किंतु दूसरे दिन मुंबई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से पोस्टर लगा दिए गए कि जो अंग्रेज अफसर रिचार्ड का सिर काटकर लाएगा, उसे 75,000 का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज अफसर इससे ओर अधिक क्रोधित हो गए। उसके बाद अंग्रेजों ने उनका पीछा ही पकड़ लिया।

20 जुलाई, 1879 को फड़के बीमारी की हालत में एक मंदिर में आराम कर रहे थे। उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और काला पानी की सजा देकर उन्हें अंडमान जेल में भेज दिया गया। 17 फरवरी, 1883 को काला पानी की सजा काटते हुए जेल के अंदर ही देश का वीर शहीद,  स्वतंत्रता सेनानी, महानायक शहीद हो गया।