भारतीय संविधान का अनुच्छेद-32 “भारतीय नागरिकों को अपने मौलिक एवं संवैधानिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है।” समानता अनुच्छेद-32 के अंतर्गत केवल पीड़ित पक्ष अपनी समस्याओं के समाधान के लिए न्यायालय के पास जा सकते हैं। अनुच्छेद-226 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि उच्च न्यायालय अर्थात हाईकोर्ट मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कानूनी अधिकारों को भी लागू करने का निर्देश जारी कर सकता है।
“भारतीय परिप्रेक्ष्य में जनहित याचिका का उपयोग वंचित वर्ग को न्याय दिलाने तथा राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों का समाधान करने के लिए किया जाता है। इसके द्वारा केंद्र एवं संबंधित राज्य सरकार को वंचित वर्ग के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सकारात्मक कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है।”
संविधान के अनुसार, अनुच्छेद-12 के अंतर्गत घोषित प्राधिकरण यदि सार्वजनिक हितों के प्रतिकूल कार्य करते हैं तो राज्य सरकार या केंद्र सरकार या न्यायपालिका या किसी भी निजी पक्ष के खिलाफ जनहित याचिका दायर की जा सकती है। इसके लिए वंचित वर्ग को यह अधिकार है।
जनहित याचिका किसी नागरिक या संगठन के निजी उद्देश्य की पूर्ति के लिए तैयार नहीं की जाती है, बल्कि गंभीर सार्वजनिक उद्देश्यों को प्राप्त करने या वंचित वर्ग को न्याय दिलाने के लिए दायर की जाती है। जनहित याचिका की इस प्रणाली ने भारत में पूर्व प्रचलित Locus Standi/सुने जाने का अधिकार (केवल प्रभावित व्यक्ति ही न्याय पाने का अधिकार की अपील कर सकता है) को बदल दिया है।
1979 में न्यायमूर्ति पीएम भगवती तथा न्यायमूर्ति वी एन कृष्णा अय्यर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका स्वीकार करने वाले पहले न्यायाधीश थे।
जनहित याचिका कैसे दायर करें?
मामला दायर करने के लिए किसी जनहित वकील या संगठन से संपर्क करें। आवश्यक दस्तावेज एकत्र करें जैसे कि स्वामित्व विलेख, निवास का प्रमाण, पहचान प्रमाण, नोटिस, पुनर्वास नीति (यदि कोई हो) तथा बेदखली की तस्वीरें। न्यायालय में आने वाले सभी पीड़ित पक्षों के नाम और पते सूचीबद्ध करें।