भारत की विदेश नीति हथियारों की दौड़ की विरोधी तथा निशस्त्रीकरण (Disarmament) की हिमायती है। यह पारंपरिक व नाभिकीय दो प्रकार के हथियारों से संबंधित है। इसका उद्देश्य शक्तिशाली समूह के मध्य तनाव कम या समाप्त कर विश्व शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना है और हथियारों के उत्पादन पर होने वाले अनुपयोगी खर्च को रोककर देश के आर्थिक विकास में गतिशीलता लाना है। भारत हथियारों की दौड़ पर नजर रखने व निशस्त्रीकरण की प्राप्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र (UNO) का मंच इस्तेमाल करता है। भारत ने इस दिशा में पहल करते हुए 1985 में एक छ: देशीय सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया और नाभिकीय निशस्त्रीकरण के लिए ठोस प्रस्ताव दिए।
सन् 1968 में नि: शस्त्रीकरण संधि तथा 1996 में CTBT हस्ताक्षर न करके भारत ने अपने नाभिकीय विकल्प खुले रखें। भारत ने निशस्त्रीकरण संधि एवं सीटीबीटी का उनके भेदभाव पूर्ण व शासनात्मक चरित्र के कारण विरोध किया। यह एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को निरंतर जारी रखती है, जिसमें केवल पांच राष्ट्र (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड) ही नाभिकीय हथियार रख सकते हैं।
निशस्त्रीकरण की जरूरत क्यों पड़ी?
मानव सभ्यता को शांतिपूर्ण बनाए रखने और उसकी प्रगति के लिए निशस्त्रीकरण अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि हथियारों की बढ़ती होड़, सैन्य शक्ति में हुई बढ़ोतरी तथा अस्त्र शस्त्रों के तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर बढ़ते निवेश से मानव जाति की प्रगति और शांति के लिए नया खतरा बन गया है।
20वीं शताब्दी में अमेरिका और रूस के बीच रहे शांति युद्ध में हथियारों का बड़े स्टार पर उत्पादन किया गया अगर हम वर्तमान समय की बात करें तो भारत और चीन के बीच बने शांति युद्ध माहौल के कारण भारत ने बड़े स्टार पर रासायनिक हथियारों का आयात किया है।
निशस्त्रीकरण की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण है।
- मुख्य कारण विश्व में शांति बनाए रखना
- परमाणु संकट से विश्व को बचाना
- आर्थिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए
- पर्यावरण के लिए
- शस्त्रों का परीक्षण करना
- भय को समाप्त करना और
- साम्राज्यवाद का अंत करने में सहायक
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
CTBT (The Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) संधि सभी प्रकार के परमाणु हथियारों के परीक्षण एवं उपयोग को प्रतिबंधित करती है। यह संधि जिनेवा के निशस्त्रीकरण सम्मेलन के पश्चात प्रकाश में आई थी। इस संधि पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किए गए थे। अब तक इस संधि पर 184 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।