अन्तर्राष्ट्रीय सीमा वह विभाजक रेखा है जो दो सार्वभौम राज्यों के वास्तविक प्रभाव क्षेत्र को एक दूसरे से अलग करती है। इसका निर्धारण दो राज्यों के बीच समझौते की प्रक्रिया से होता है। समझौते के अभाव में सीमा क्षेत्र में तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है, ऐतिहासिक काल में अंतरराष्ट्रीय सीमा के बदले सीमा क्षेत्र हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे परिवहन और तकनीकी में विकास हुआ तो सीमांत क्षेत्र में राज्यों का प्रभाव फैलने लगा और अंततः समझौते की प्रक्रिया से अंतरराष्ट्रीय सीमा का विकास हुआ।
अंतर्राष्ट्रीय सीमा की निम्नलिखित विशेषताएं होती है।
- दो राज्यों के बीच समझौते से सीमा का विकास होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा अभिकेंद्रीय शक्तियों का प्रतीक है।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा अंतर्मुखी होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा ज्यामितीय नियमों पर आधारित होती है और यह रेखीय होती है और यहां संसाधन और मानव अधिवास नहीं होता है।
यद्यपि सभी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के एक ही कार्य होते हैं लेकिन सभी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं भौगोलिक दृष्टि से एक प्रकार की नहीं होती है।
सीमा के वर्गीकरण का नियम
राजनीति भूगोल में सीमा का निर्धारण किया गया है। सीमा के वर्गीकरण के दो आधार हैं।
- उत्पत्ति के आधार पर
- आकारकी के आधार पर
उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण
सीमाओं की विशेषता उसकी उत्पत्ति प्रक्रिया से निर्धारित होती है और इस दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय सीमा को 4 वर्गों में विभाजित किया गया है।
- पूर्ववर्ती सीमा
- परवर्ती सीमा
- अध्यारोपित सीमा
- अवशिष्ट सीमा
उत्पत्ति के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा का नामांकन भौतिक भूगोल की कई उत्पत्ति प्रक्रियाओं से समरूपता रखती है। अतः इसी के अनुरूप नामांकन भी किया गया है। प्रथम तीन प्रकार की सीमा का नामांकन नदी प्रणाली से संबंधित है, जबकि अंतिम प्रकार पर्वतों की उत्पत्ति से संबंधित है।
- पूर्ववर्ती सीमा : वह सीमा है, जिसकी उत्पत्ति सीमावर्ती प्रदेश में मानवीय अधिवास और संस्कृति के विकास के पूर्व हो चुकी होती है। वस्तुतः सीमावर्ती प्रदेश में सभी विकास प्रक्रियाएं अंतरराष्ट्रीय सीमा के नियमों के अनुरूप होती हैं। अतः दावे और प्रति दावे की संभावना नहीं होती है। अतः ये सीमाएं तनाव रहित होती हैं। अधिकतर क्षेत्रों में ये सीमाएं सीधी रेखा में होती है। जैसे कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच 49 डिग्री उत्तरी अक्षांश एक सुंदर उदाहरण है।
- परवर्ती सीमा : वह सीमा है जिसकी उत्पत्ति किसी प्रदेश में सांस्कृतिक विवाद के बाद हुई। जैसे – अलास्का और कनाडा के बीच 141° उत्तर पश्चिमी देशान्तर की सीमा इसका उदाहरण है। उसकी तुलना परवर्ती नदी से की जा सकती है, जिसका विकास पर्वतों की उत्पत्ति के बाद उसके ढाल के अनुरूप होती है।
वह क्षेत्र जहां दो संस्कृतियों का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है, अर्थात दो सांस्कृतिक ढाल मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण करते हैं। भारत और पाकिस्तान की सीमा प्रदेश इसका प्रमुख उदाहरण है। परवर्ती सीमा प्रदेश में पूर्व से ही सांस्कृतिक विकास होने के कारण दावे और प्रतिदावे रखे जाते हैं जिससे ये सीमाएं तनाव ग्रस्त हो जाते हैं।
- अध्यारोपित अन्तर्राष्ट्रीय सीमा : इसकी तुलना अध्यारोपित नदी से की जा सकती है। जिस प्रकार अध्यारोपित नदी अन्ततः अपने प्राचीन ढाल को प्राप्त कर लेती है। उसी प्रकार अध्यारोपित सीमाएं भी सामयिक होती है, और कुछ अंतराल के बाद उनके स्थान पर प्राचीन सीमाएं विकसित हो जाती है।
दूसरे शब्दों में, अध्यारोपित सीमाएं अस्थाई होती है। इसका प्रमुख उदाहरण पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच सीमा रेखा है। यह वास्तविक सांस्कृतिक स्थिति के अनुरूप नहीं थी, अतः कुछ अंतराल के बाद दोनों ही प्रदेश के लोगों के मध्य बढ़ते लगाव के कारण यह सीमा रेखा समाप्त हो चुकी है और प्रारंभिक प्राकृतिक सीमा रेखा ही कार्यरत है।
वर्तमान समय में, अध्यारोपित सीमा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण 39° उत्तरी अक्षांश हैं। उत्तरी कोरिया एवं दक्षिणी कोरिया के बीच बढ़ता अन्तराकर्षण इस सीमा रेखा के समापन के संकेत देते हैं।
- अवशिष्ट सीमा : इसकी प्रकृति अवशिष्ट पर्वत की तरह है। जिस प्रकार अवशिष्ट पर्वत अपने वास्तविक और प्राकृतिक कार्यिक महत्व को समाप्त कर चुका होता है, उसी प्रकार अवशिष्ट सीमा भी अपने वास्तविक प्रारंभिक कार्यिक महत्व को समाप्त कर चुका होता है। बेहतर उदाहरण तिब्बत और चीन के बीच सीमा रेखा। तिब्बत और चीन के बीच पर्याप्त भिन्नता है।
मध्य एशियाई सोवियत गणतंत्र के स्वतन्त्र होते ही उनकी निष्क्रिय प्रारंभिक सीमाएं पुनः सक्रिय हो गई तथा वे अन्तर्राष्ट्रीय सीमा में बदल चुकी है। तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग हो रही है, ऐसे में चीन और तिब्बत की सीमा रेखा पूर्ण जीवित हो सकती है।
आकारकी के आधार पर वर्गीकरण
आकारकी का तात्पर्य है, भौतिक विशेषताओं की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का वर्गीकरण करना। आकारकी के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा तीन भागों में बांटते हैं।
- स्थलाकृतिक सीमा
- ज्यामितीय सीमा
- मानव-भौगोलिक सीमा
- स्थलाकृतिक सीमा : स्थलाकृतिक दृष्टि को 6 प्रकारों में बांटा जा सकता है।
- पर्वतीय सीमा
- नदी सीमा
- वन सीमा
- दलदली भूमि सीमा
- मरुस्थलीय सीमा
- झील आधारित सीमा
- पर्वतीय सीमा : वह सीमा है जो पर्वत के शीर्ष बिन्दु को आधार मानकर खीचीं जाती है। सही अर्थों में यह जलविभाजक सीमा है। यह न केवल जल प्रवाह को विभाजित करती है बल्कि दो देशों की सार्वभौमिकता और राष्ट्रीयता को भी विभाजित करती है। सामान्यतः ये विवाद रहित सीमा होते हैं। लेकिन भारत और चीन के बीच खींची गई सीमा इसका अपवाद है। विवाद रहित पर्वतीय सीमाओं में –
- पेरीनीज पर्वत, फ्रांस और स्पेन के मध्य की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बनाती है।
- एंडीज पर्वत जो चिली और अर्जेंटीना के बीच विवाद रहित अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है।
- नदी सीमा : भी सामान्यतः विवाद रहित होते है। नदी प्रवाह की मध्य धार को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में लिया जाता है। भारत और नेपाल के बीच काली और गंडक नदी इस प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएं बनाती है। यें सीमाएं अपरदन करने लगती है। अतः पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्र की नदी सीमा निर्धारण के लिए अधिक अनुकूल होती हैं। USA एवं मैक्सिको के बीच रियोग्राडे नदी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का कार्य करती है, लेकिन मेक्सिको की खाड़ी के तट के पास क्षेत्रीय अपरदन की क्रिया के कारण इसके दोनों किनारों को कंक्रीट का बना दिया जाता है। सेंटलारेंस नदी कनाडा और अमेरिका के बीच, आमूर नदी चीन और रूस के मध्य, औरेंज नदी नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच सीमा निर्धारण का कार्य करती है।
- वनीय सीमा : भी सामान्यतः विवाद रहित होते हैं। सघन वनीय प्रदेश में विरल जनसंख्या होती है। अतः दावे और प्रतिदावे की संभावना नहीं होती है। ऐसी परिस्थिति में वन के मध्यवर्ती भाग में संदर्भ बिन्दु को आधार मानते हुए अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण किया जाता है। रूस और फिनलैंड के बीच अन्तर्राष्ट्रीय सीमा वनीय सीमा के द्वारा ही निर्धारित किया गया है।
- दलदली भूमि क्षेत्र : में दावे और प्रतिदावे का अभाव होता है, ऐसी स्थिति में भूमि के मध्य में संदर्भ बिन्दु की मदद से अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण किया जाता है। यहां मानव निर्मित संदर्भ बिन्दु भी विकसित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए – बेल्जियम और नीदरलैंड के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा निर्धारण क्षेत्र, भारत एवं पाकिस्तान के बीच सरक्रीक क्षेत्र दलदली क्षेत्र है जो विवादित है।
- मरुस्थलीय प्रदेशों : के मध्य में भी अंतर्राष्ट्रीय सीमा गुजरती है। यह विरल अधिवास का क्षेत्र होता है और पड़ोसी राज्य मरुस्थल के मध्य से संदर्भ बिंदु की सहायता से अंतरराष्ट्रीय सीमा का निर्धारण करते हैं। लीबिया और मिस्र के बीच इस प्रकार की सीमा है। पुनः पेरू और चिली के बीच भी इस प्रकार की सीमा निर्धारित है।
- झील : भी अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण में सहायक होती है। छोटी झील की स्थिति में झील का मध्यवर्ती भाग नदी के नियमों के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय सीमा निर्धारण का कार्य करती है। लेकिन अगर बड़ी झील हो तो सीमा निर्धारण के लिए समुद्री नियमों का निर्धारण होता है। सुपीरियर झील तथा विक्टोरिया झील में जलीय सीमा अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण कार्य करती है। पेरू और बोलीविया के बीच टिटिकाका झील अंतरराष्ट्रीय सीमा का एक उदाहरण है।
- ज्यामितीय सीमा : ज्यामितीय सीमा रेखा वे रेखाएं हैं जो ज्यामितीय नियमों पर आधारित होती हैं। उसे पुनः तीन भागों में बांटते है,
- अक्षांशीय सीमा रेखा
- देशांतरीय सीमा रेखा
- संदर्भ बिंदु सीमा रेखा
- मानव भौगोलिक सीमा : यह मानव के कार्यिक गुणों पर आधारित है। जिस प्रदेश में जितनी अधिक जनसंख्या और विविधता होती है, वहां अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण में उतनी ही कठिन जटिलताएं होती है। सामान्यतः मानव भौगोलिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा विवाद ग्रस्त होती है।
इस सीमा को भी 4 भागों में विभाजित करते हैं।
- भाषा आधारित सीमा
- धर्म आधारित सीमा
- प्रजातीय गुणों पर आधारित सीमा
- सांस्कृतिक सीमा
भाषा आधारित सीमा का सर्वोत्तम उदाहरण यूरोपीय राज्यों का विभाजन है। यदि यूरोपीय राज्यों में भाषा आधारित सीमा विवाद नहीं के बराबर है, लेकिन कनाडा और भारत जैसे संघीय देशों की आंतरिक सीमाएं न केवल भाषा पर आधारित हैं, वरन विवाद ग्रस्त भी है।
जाति, जनजाति गुणों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सीमा का विकास मध्य एशियाई देशों की विशेषता है। कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे गणराज्य अपनी प्रजाति के गुणों से सीमांकित है। लेकिन युगोस्लाविया संघ के राज्यों में स्वतंत्रता को लेकर उत्पन्न तनाव प्रजातीय दावे और प्रतिदावे का परिणाम है। सांस्कृतिक गुणों के आधार पर भी राज्यों का सीमांकन होता है। ईरान और इराक इस्लामिक राज्य हैं तथा धार्मिक एकता के बावजूद उनमें सांस्कृतिक विविधता में पाई जाती हैं। और यही विविधता इन्हें अलग राज्य बनाती है।
अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट होता है कि सभी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं न तो समान प्रक्रिया से विकसित हुई है और न ही समान विशेषताएं रखती हैं। सिर्फ कार्यिक समानता है। पुनः सीमाओं के निर्धारण के आधार पर भी सीमा को विवादग्रस्त विवादरहित होने के लिए उत्तरदाई हो सकते हैं। विश्व की कई सीमाएं परिभाषित होते हुए भी भी विवादित है, जो कई अन्य राजनीतिक – सामरिक कारकों से प्रभावित है।